(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर लघुकथा – ब्रांड एम्बेसडर)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 236 ☆

? लघुकथा – ब्रांड एम्बेसडर ?

काला क्रीज किया हुआ फुलपैंट, हल्की नीली शर्ट, गले में गहरी नीली टाई, कंधे पर लैप टाप का काला बैग, और हाथ में मोबाइल… जैसे उसकी मोनोटोनस पहचान बन गई है. मोटर साइकिल पर सुबह से देर रात तक वह शहर में ही नही बल्कि आस पास के कस्बों में भी जाकर अपनी कंपनी के लिये संभावित ग्राहक जुटाता रहता, सातों दिन पूरे महीने, टारगेट के बोझ तले. एटीकेट्स के बंधनो में, लगभग रटे रटाये जुमलों में वह अपना पक्ष रखता हर बार, बातचीत के दौरान सेलिंग स्ट्रैटजी के अंतर्गत देश दुनिया, मौसम की बाते भी करनी पड़ती, यह समझते हुये भी कि सामने वाला गलत कह रहा है, उसे मुस्कराते हुये हाँ में हाँ मिलाना बहुत बुरा लगता पर डील हो जाये इसलिये सब सुनना पड़ता. डील होते तक हर संभावित ग्राहक को वह कंपनी का “ब्रांड एम्बेसडर” कहकर प्रभावित करने का प्रयत्न करता जिसमें वह प्रायः सफल ही होता. डील के बाद वही “ब्रांड एम्बेसडर” कंपनी के रिकार्ड में महज एक आंकड़ा बन कर रह जाता. बाद में कभी जब कोई पुराना ग्राहक मिलता तो वह मन ही मन हँसता, उस एक दिन के बादशाह पर. उसका सेल्स रिकार्ड बहुत अच्छा है, अनेक मौकों पर उसकी लच्छेदार बातों से कई ग्राहकों को उसने यू टर्न करवा कर कंपनी के पक्ष में डील करवाई है. अपनी ऐसी ही सफलताओ पर नाज से वह हर दिन नये उत्साह से गहरी नीली टाई के फंदे में स्वयं को फंसाकर मोटर साइकिल पर लटकता डोलता रहता है, घर घर.

इयर एंड पर कंपनी ने उसे पुरस्कृत किया है, अब उसे कार एलाउंस की पात्रता है,

आज कार खरीदने के लिये उसने एक कंपनी के शोरूम में फोन किया तो उसके घर, झट से आ पहुंचे उसके जैसे ही नौजवान काला क्रीज किया हुआ फुलपैंट, हल्की भूरी शर्ट, गले में गहरी भूरी टाई लगाये हुये… वह पहले ही जाँच परख चुका था कार, पर वे लोग उसे अपनी कंपनी का “ब्रांड एम्बेसडर” बताकर टेस्ट ड्राइव लेने का आग्रह करने लगे, तो उसे अनायास स्वयं के और उन सेल्स रिप्रेजेंटेटिव नौजवानो के खोखलेपन पर हँसी आ गई.. पत्नी और बच्चे “ब्रांड एम्बेसडर” बनकर पूरी तरह प्रभावित हो चुके थे.. निर्णय लिया जा चुका था, सब कुछ समझते हुये भी अब उसे वही कार खरीदनी थी. डील फाइनल हो गई. सेल्स रिप्रेजेंटेटिव जा चुके थे. बच्चे और पत्नी बेहद प्रसन्न थे. आज उसने अपनी पसंद का रंगीन पैंट और धारीदार शर्ट पहनी हुई थी बिना टाई लगाये, वह एटीकेट्स का ध्यान रखे बिना धप्प से बैठ गया अपने ही सोफे पर. . आज वह “ब्रांड एम्बेसडर” जो था.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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