श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “गुण बिनु बूंद न देहि…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ गुण बिनु बूंद न देहि… ☆
क्या आपने कभी सोचा कि हर सुंदर वस्तु की सुरक्षा हेतु प्रकृति ने कुछ न कुछ ऐसा क्यों बनाया जिससे उसके सौंदर्य को बचाया जा सके – जैसे फूल और काँटे का साथ।
किसी पौधे की पहचान उसके फल,फूल व उपयोगिता के आधार पर होती है। यादि पौधे में काँटें हैं तो वे हमेशा बनें रहते हैं, जबकि फूल का अस्तित्व कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाता है।
ऐसा ही अक्सर मीठे वचन बोलने वाले लोगों के साथ भी देखा गया है। वे सब के साथ मिलकर चलना चाहते हैं, इस चक्कर में सही,गलत का भेद भूलकर बस जो कमजोर दिखा उसी के तरफ चल दिए या कई नावों की सवारी करते हुए जीना ही उचित समझते हैं, वहीं दूसरी ओर कड़वे वचन बोलने वाला व्यक्ति कुछ क्षणों के लिए अप्रिय लगता है, पर जल्दी ही लोकप्रिय हो जाता है, क्योंकि अप्रिय वचन मन को झकझोरने के साथ ही साथ ये सोचने पर विवश कर देते हैं कि कैसे परिस्थितियों में सुधार हो।
कहा भी गया है कि जहाँ ज्यादा मीठा होता है, वहाँ कीड़े पड़ जाते हैं। सच्चाई यही है कि मीठा रोग कड़वे करेले और नीम से ही ठीक होता है। खेतों और बगीचे की बाड़ी भी कटीले बबूल से ही बनती है। रेतीले इलाकों में पानी की कमीं को पूरा करने हेतु पत्तियाँ काँटो में बदल जाती हैं। प्रकृति बहुत से ऐसे रूपांतरण समय के साथ- साथ जीव- जंतुओं, सजीव – निर्जीव में करती जा रही है।
बलिहारी नृप कूप की, गुण बिनु बूंद न देहि- ये अलंकृत पंक्ति सचमुच गुण के महत्व को दर्शाती है। कहीं गुण विशेषण के रूप में, तो कहीं कर्ता के रूप में रस्सी बन कर उपयोगी होता है। आत्मचिंतन से एक बात तो सिद्ध होती है कि जितना महत्व हमारे जीवन में फूलों का है उससे कहीं अधिक जीवन को सुचारू रूप से चलाए रखने में काँटों का भी है, इसलिए हमें सामंजस्य बनाते हुए फूल और काँटों की भाँति रहना चाहिए।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020
मो. 7024285788, [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈