श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 85 – मनोज के दोहे… ☆
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1 सच्चाई
सच्चाई परिधान वह, श्वेत हंस चितचोर।
धारण करता जो सदा, आँगन नाचे मोर।।
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2 परिधान
नवल पहन परिधान सब, चले बराती संग।
द्वार-चार में हैं खड़े, स्वागत के नव रंग।।
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3 सौभाग्य
कर्म अटल सौभाग्य है, बनता जीव महान।
फसल काट समृद्धि से, जीता सीना तान।।
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4 बदनाम
मानव को सत्कर्म से, मिल जाते हैं राम ।
फँसता जो दुष्कर्म में, हो जाता बदनाम।।
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5 आहत
सरल देह-उपचार है, औषधि दे परिणाम।
आहत मन के घाव को, भरना मुश्किल काम।
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6 यात्रा
अंतिम यात्रा चल पड़ी, समझो पूर्ण विराम।
मुक्ति-धाम का सफर ही, सबका अंतिम धाम।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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