श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सूखी बगिया…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 12 ☆ सूखी बगिया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
अपनेपन से ख़ाली-ख़ाली
है अपनी बगिया
रिश्तों की जाने कब सूखी
भरी हुई नदिया।
नदिया के हर घाट
रेत के बने मरुस्थल
नहीं आँख में पानी
सूख गये हैं काजल
जगह-जगह से उधड़ी सारी
सपनों की बखिया।
उल्टी गिनती गिनें
आज हम संबंधों की
शेष बचा जो
पीड़ा भोगे प्रतिबंधों की
पीस रही है बैठ उमर को
सुख-दुख की चकिया।
स्वार्थ-सिद्धियाँ और
आदमी बना खिलौना
संवेदन को भूल
लोभ का लगा डिठौना
सत्य खड़ा चुपचाप, झूठ है
पंचायत मुखिया।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
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