श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पिता… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 136 ☆

☆ # पिता… #

बचपन में उंगली पकड़कर

चलना सिखाना

कंधों पर बिठाकर दौड़ लगाना

रोज स्कूल ले जाना, लाना

मम्मी से छुपाकर चाकलेट खिलाना

आगे बढ़ने की राह दिखाना

टेबल रोज याद कराना

कभी गिर गये तो दौड़कर उठाना

बहादुर बच्चा है कहकर समझाना

यह सब बातें मासूम

जिसके संग जीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

स्कूल, कालेज में सब की सुनो  

खेलो कूदो पर शिक्षा को प्रथम चुनो

अपना ध्यान लक्ष्य पर रखो

खूब पढ़ाई करो

कामयाबी का स्वाद चखो

हर परीक्षा में प्रथम आया करो

मेरिट के मार्क लाया करो

नई नई बातें सीखने की आदत डालोगे, तभी तो सीखोगे

जीतने की आदत डालोगे

तभी तो जीतोगे

यह शिक्षा देते देते

जिसका हर पल बीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

बेटे की कामयाबी पर वो

फूला नहीं समाता है

यार दोस्तों में,

समाज में प्रतिष्ठा पाता है

बेटे की शादी पर

जश्न मनाता है

बहू को बेटी बनाकर

घर में लाता है

पोते के आगमन पर

खुशियां मनाता है

जीवन सफल हो गया

सब को बताता है

पत्नी के संग तीर्थयात्रा पर

जाता है

ईश्वर को भेंट

खुशी खुशी चढ़ाता है

भगवान का चरणामृत  

आंख मूंदकर पीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

जीवन के आखिरी पड़ाव पर

जीर्ण-शीर्ण काया की नाव पर

बहू-बेटे से दूर हो जाता है

अकेले पन से चूर हो जाता है

असाध्य बीमारियाँ घेर लेती हैं

हर व्यक्ति मुंह फेर लेते हैं  

जिंदादिल आदमी भी

बन जाता है बेचारा

वृद्ध पत्नी का ही होता है सहारा

मौत के इंतज़ार में

जिसकी सजी हुई चिता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है/

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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