श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 87 – मनोज के दोहे… ☆
1 बूँदाबाँदी
बूँदाबाँदी ने भरा, तन-मन में उल्लास।
जेठ माह की ज्वाल से, मन था बड़ा उदास।।
2 बरसात
धरा मुदित हो कह उठी, लो आई बरसात।
अनुपम छटा बिखेर दी, गर्मी को दी मात।।
3 धाराधार
रूठे बादल घिर गए, बरसे धाराधार।
ग्रीष्म काल दुश्वारियाँ,बदल गया संसार।।
4 पावस
प्रिय पावस की यह घड़ी, लगती सब को नेक।
नव अंकुर निकले विहँस, मुस्कानें हैं एक।।
5 चातुर्मास
भक्ति भाव आराधना, आया चातुर्मास।
धर्म धुरंधर कह गए, माह यही हैं खास।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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