श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# भरोसा… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 138 ☆
☆ # भरोसा… # ☆
सुबह-सुबह हमारे पुराने मित्र से
मार्निंग वॉक के दौरान मुलाकात हुई
थककर बेंच पर बैठ कर बात हुई
वो प्रसन्न होकर बोला
भाई! कैसे हो ?
तुम तो पहले जैसे ही हो
मैंने कहा –
मस्त हूं,
कविता लिखने में व्यस्त हूं
यार, तुम बताओ
कैसे कट रही है ?
बहू-बेटे से घर में पट रही है?
उसका चेहरा
अचानक उतर गया
माथे पर पसीना बिखर गया
कांपती आवाज़ में
रोने के अंदाज में
बोला –
बहुत पीड़ा झेल रहा हूं
मृत्यु से आंख मिचौली
खेल रहा हूं
एक बेटा
मिन्नतों के बाद मिला है
परिवार संग दिल्ली में रहता है
आप वही रहो
हमसे कहता है
कभी कभी भूले से
फोन करता है
आप लोगों से
जल्दी मिलने आऊँगा
झूठ मूठ का
स्वांग भरता है
पत्नी इस सदमे से
बीमार पड़ गई है
मेरी तो आंखे
शर्म से गड़ गई है
क्या हम इसीलिए बच्चों को
छोटे से बड़ा करते हैं?
उनके उन्नति के लिए ,
कॅरीयर के लिए ,
क्या क्या नहीं करते हैं ?
अब हम किसके सहारे जीयेंगे
अकेलेपन का जहर
कब तक पीयेंगे
मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा
सांत्वना दी, आंसू पोंछे
और बोला –
यार, मुस्कराओ,
सब भूल जाओ
वृद्धावस्था में हर घर की
यही कथा है
हर रिटायर्ड वृद्ध व्यक्ति की
यही व्यथा है
वो अपनी आंखें पोंछकर
कुछ सोचकर
बोला – भाई !
मुझे गम नहीं है कि
उसने हमें अकेले छोड़ा है
दुःख तो इस बात का है की
उसने हम मां-बाप का भरोसा
इतने बेरहमी से तोड़ा है/
© श्याम खापर्डे
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