श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “आइने में स्वयं के…”।)
☆ तन्मय साहित्य #190 ☆
☆ आइने में स्वयं के… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
कर्म से है निकट का रिश्ता
नहीं हूँ जानता मैं भेद कि,
सत्कर्म और दुष्कर्म क्या
धर्म के अंदर छिपा
वह मर्म क्या
निर्विवादी वाद
पूँजी,धर्म जाति विवाद भाषा
इन सभी से दूर हट कर
जानता हूँ सिर्फ इतनी बात
शोषित पीड़ित दुखियों के
रहूँ मैं हर घड़ी में साथ
गंध पर
प्रतिबंध में नहीं चाहता
स्वच्छंद विचरे
किंतु थकित निराश बोझिल
छंद से अनुबंध कर ले
तो मधुर सूरसाज निकले
पाप क्या संताप क्या
है पुण्य जाप अलाप क्या
इष्ट और विशिष्ट
है नहीं लक्ष्य मेरा
बस जरा सी बात
केवल जानता हूँ
आईने में हृदय के
मैं स्वयं क्या आप क्या!
☆ ☆ ☆ ☆ ☆
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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