श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# तुम सावन बन आ जाते हो… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 140 ☆
☆ # तुम सावन बन आ जाते हो… # ☆
तुम मेरे सूखे जीवन में
बादल बन छा जाते हो
मै जब भी प्यासी होती हूं
तुम सावन बन आ जाते हो
जब मयूर नाचता है वन में
प्रीत जगाता है तन में
मैं चकोर बन फिरती हूं दर दर
तुम चंद्रकिरण बन आ जाते हो
जब भी मैं श्रृंगार करती हूं
नयनों को कटार करती हूं
तुम्हारी राह तकता है यौवन
तुम दर्पण बन आ जाते हो
केवड़े के फूल सा महकती हूं
नागिन के फूंकार सा दहकती हूं
मुझको निकलने इस नागपाश से
तुम चंदन बन आ जाते हो
जब हिमखंड टूटकर पिघलते है
निर्मल जल में बदलते है
मैं उफनती नदी सी बहती हूं
तुम चट्टान बन आ जाते हो /
© श्याम खापर्डे
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