श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “कविवर तुम श्रृंगार लिखो…”।)
☆ तन्मय साहित्य #193 ☆
☆ कविवर तुम श्रृंगार लिखो…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
फन फुँफकार रहा विषधर
पर तुम सावनी फुहार लिखो
पुष्प-वाटिका, बाग-बहारें
कविवर तुम श्रृंगार लिखो।
प्यार मुहब्बत इश्क-मुश्क के
नए तराने तुम गाओ
नख-शिख सुंदरियों के वर्णन
कर खुद पर ही इतराओ,
कोई तुम्हें लिखे न लिखे पर
तुम उन सब को प्यार लिखो
फन फुँफकार रहा विषधर
पर कविवर तुम श्रृंगार लिखो….।
आत्ममुग्ध हो तत्सम शब्दों
का, तुम ऐसा जाल बुनो
अलंकार, व्यंजना, रम्य
उपमाओं के प्रतिमान चुनों,
विरह व्यथा दुख भरी कथा
कब होगी आँखें चार लिखो
फन फुँफकार रहा विषधर
पर कविवर तुम श्रृंगार लिखो…..।
दल-गत, छल-गत कृत्य दिखे
या पंथ-जाती संग्राम मचे
रहना इनसे अलग सदा तुम
कभी न इन पर काव्य रचें,
तपती जेठ दुपहरी में भी
शीतल मधुर बयार लिखो
फन फुँफकार रहा विषधर
पर कविवर तुम श्रृंगार लिखो।
कभी विसंगतियों पर भूख
प्यास पर कलम न चल पाए
रहना सजग, दया, करुणा
ममता, संत्रास न भरमाये,
निज हित पर प्रहार हो तब
समतामूलक व्यवहार लिखो
फन फुँफकार रहा विषधर
पर कविवर तुम श्रृंगार लिखो…..।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈