श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बन पाया न कबीर…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 20 ☆ बन पाया न कबीर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
लाख जतन कर
हार गया पर
बन पाया न कबीर।
रोज धुनकता रहा जिंदगी
फिर भी तो उलझी
रहा कातते रिश्ते- नाते
गाँठ नही सुलझी
तन की सूनी
सी कुटिया में
मन हो रहा अधीर।
गड़ा ज्ञान की इक थूनी
गढ़े सबद से गीत
घर चूल्हे चक्की में पिसता
लाँघ न पाया भीत
अपने को ही
रहा खोजता
बनकर मूढ़ फकीर।
झीनी चादर बुनी साखियाँ
जान न पाया मोल
समझोतों पर रहा काटता
जीवन ये अनमोल
पढ़ता रहा
भरम की पोथी
पढ़ी न जग की पीर।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈