श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# आजादी की पावन बेला में… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 144 ☆
☆ # आजादी की पावन बेला में… # ☆
यह आजादी की पावन बेला है
सुगंधित फूलों का लगा मेला है
भांति भांति के
रंग बिरंगे, नये पुराने
सभी रंगों का अदभुत
एक रेला है
बच्चे, बूढ़े और जवान
सबके हाथ में तिरंगा है
क्या धरती, क्या आसमान है
हर जगह लहराता तिरंगा है
यह सड़क पर लंबी लंबी रैलियां
जयहिंद का नारा लगाते
बेटे और बेटियां
शाम ढलते ही, हर चौराहे पर
जलती हुई ये मोमबत्तियां
यह देश है हम सबका
हम सब इसके वासी हैं
कोई नहीं पराया यहां पर
हर शख्स भारत वासी हैं
तब हर क्षेत्र मे भेदभाव किसलिए?
जलती हुई बस्तियां ओर गांव किसलिए?
अहंकार, आडंबर, धर्मांधता से
डगमगाती देश की नांव किसलिए?
उठो साथी, जागो, समझो
तुम्हारी भावनाओं के साथ
यह खेल क्यों ?
निर्धन, वंचित, असहाय, पीड़ित को
बचाने प्रशासन फेल क्यों ?
जब सब के खून का रंग एक है
तब एक को सिहांसन
दूसरे को जेल क्यों ? /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈