श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “आतम ज्ञान बिना सब सूना…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 164 ☆

☆ आतम ज्ञान बिना सब सूना… ☆

बिना परिश्रम कुछ भी नहीं मिलता, सही दिशा में कार्य करते रहें। यह मेरे एक परिचित जिन्हें ज्ञान बांटने की आदत है, उन्होंने अभी कुछ देर पहले कही और पूरी राम कहानी सुना दी।

दरसअल उनको किसी ने ब्लॉक कर दिया यह कहते हुए कि इतना ज्ञान सहन करने की सामर्थ्य मुझमें नहीं। अब बेचारे ज्ञानचंद्र तो परेशान होकर घूमने लगे तभी ध्यानचंद्र जी ने कहा मुझे सुनाते रहें , जब जी आए टैग भी करें क्योंकि मैं सात्विक विचारों का हूँ, सकारात्मक चिंतन मेरी विशेषता है। अनावश्यक बातों को एक कान से सुन दूसरे से निकालता जाता हूँ। आँखें मेरी बटन के समान हैं जो केवल फायदे में ही कायदा ढूढ़ती हैं।

पर ज्ञानचंद्र को तो एक ही बात खाये जा रही थी कि लोग सकारात्मकता को तो ब्लॉक कर रहे हैं, जबकि नकारात्मक लोगों के नजदीक जाकर ज्ञानार्जन करने की वकालत करने से नहीं चूकते हैं। और तो और उनका सम्मान कर रहें हैं, अरे भई निंदक की महिमा वर्णित है पर बिना साबुन और पानी के मुफ्त में कब तक मन को स्नान कराते रहोगे, अभी भी वक्त है, सचेत हो अन्यथा किसी और को ज्ञान बटेगा आप इसी तरह ब्लॉक करो बिना ये जाने की लाभ किसमें है। फेसबुक और व्हाट्सएप का बन्दीकरण तो सुखद हो सकता है पर दिमाग में लगा ताला अंधकार तक पहुँचाकर ही मानेगा।

कोई क्षमायाचना को अपना औजार बनाकर भरपूर जिंदगी जिए जा रहा है तो कोई क्षमा को धारण कर सबको माफ करने में अपना धर्म देखता है। कहते हैं क्षमा वीर आभूषण होता है, बात तो सही है, आगे बढ़ने के लिए पुरानी बातों पर मिट्टी डालनी चाहिए। जब मंजिल नजदीक हो तो परेशानियों से दो- चार होना पड़ता है। बस लक्ष्य को साधते हुए माफी का लेनदेन करने से नहीं चूकना चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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