श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “ज्ञान और दुविधा।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 26 ☆

☆ ज्ञान और दुविधा

कर्मिक कारण क्या था कि भीष्म को तीरों के बिस्तर पर पीड़ित होना पड़ा? इस प्रश्न के लिए कि उन्हें इस सजा से क्यों पीड़ित होना पड़ रहा है, भले ही उन्होंने पिछले 72 जन्मों के जीवन में कोई पाप नहीं किया था, भगवान कृष्ण ने उन्हें उत्तर दिया कि उन्होंने अपने पिछले 73 वें जन्म में एक मूर्खता की थी, जब उन्होंने एक कीड़े द्वारा काटे जाने के बाद उस कीड़े के शरीर में सुईया चुभा चुभा कर उसे तड़पा तड़पा कर मारा था। वो कांटे या सुईया अब आपके लिए तीरों के बिस्तर के रूप में वापस आये हैं। 72जन्मों तक आपके पापी कर्म निष्क्रिय रहे क्योंकि इन 72जीवनों में आप एक पवित्र व्यक्ति थे, लेकिन चूंकि अब आप दुर्योधन की ओर से अर्थात अधर्म की ओर से युद्ध का भाग बन गए हैं, तो आपके संचीत कर्म (जो तीन प्रकार के कर्मों में से एक है। यह किसी के पिछले सब जन्मों के कर्मों का जमा खाता होता है जिसमे से कुछ भाग उसे उसके वर्तमान जीवन में उसे भोगना पड़ता है जिन्हें प्रारब्ध कर्म कहते हैं), इस प्रकार 73 वें जीवन में पक गए और उनमे से उस 73 जन्म पहले किये गएपाप को भोगने के लिए जरूरी वातावरण उन्हें मिल गया।

क्या आपको पता है की भीष्म का जन्म भी एक अभिशाप के कारण ही था।

एक बार ‘द्यौ’ नामक वसु ने अन्य साथ सात वसुओं के साथ वशिष्ठ ऋषि की कामधेनु (अर्थ :सर्वश्रेष्ठ खुशी) का हरण कर लिया। इससे वशिष्ठ ऋषि ने द्यौ से कहा कि ऐसा कार्य तो मनुष्य करते हैं इसलिए तुम आठों वसु मनुष्य हो जाओ। यह सुनकर वसुओं ने घबराकर वशिष्ठजी की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि अन्य वसु तो वर्ष का अंत होने पर मेरे शाप से छुटकारा पा जाएंगे, लेकिन इस ‘द्यौ’ को अपनी करनी का फल भोगने के लिए एक जन्म तक मनुष्य बनकर पीड़ा भोगना होगी।

यह सुनकर वसुओं ने गंगाजी के पास जाकर उन्हें वशिष्ठजी के शाप को विस्तार से बताया और यह प्रार्थना की कि ‘आप मृत्युलोक में अवतार लेकर हमें गर्भ में धारण करें और ज्यों ही हम जन्म लें, हमें पानी में डुबो दें। इस तरह हम सभी जल्दी से मुक्त हो जाएंगे’ गंगा माता ने स्वीकार कर लिया और वे युक्तिपूर्वक शाँतनु राजा की पत्नी बन गईं और शाँतनु से वचन भी ले लिया। शाँतनु से गंगा के गर्भ में पहले जो 7 पुत्र पैदा हुए थे उन्हें उत्पन्न होते ही गंगाजी ने पानी में डुबो दिया जिससे 7 वसु तो मुक्त हो गए लेकिन 8वें में शाँतनु ने गंगा को रोककर इसका कारण जानना चाहा।गंगाजी ने राजा की बात मानकर वसुओं को वशिष्ठ के शाप का सब हाल कह सुनाया। राजा ने उस 8वें पुत्र को डुबोने नहीं दिया और इस वचनभंगता के कारण गंगा 8वें पुत्र को शाँतनु कोसौंपकर अंतर्ध्यान हो गईं। यही बालक ‘द्यौ’ नामक वसु था।

आप लोग जानते हैं कि शरशय्या पर लेटने के बाद भी भीष्म प्राण क्यों नहीं त्यागते हैं, जबकि उनका पूरा शरीर तीर से छलनी हो जाता है फिर भी वे इच्छामृत्यु के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होते हैं। भीष्म यह भलीभांति जानते थे कि सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्यागने पर आत्मा को सद्गति मिलती है और वे पुन: अपने लोक जाकर मुक्त हो जाएंगे इसीलिए वे सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते हैं । भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शाँतनु से इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त था और वे तब तक शरीर नहीं छोड़ सकते जब तक कि वे चाहें, लेकिन 10वें दिन का सूर्य डूब चुका था। बाद में सूर्य के उत्तरायण होने पर युधिष्ठिर आदि सगे-संबंधी, पुरोहित और अन्यान्य लोग भीष्म के पास पहुँते हैं। उन सबसे पितामह ने कहा कि इस शरशय्या पर मुझे 58 दिन हो गए हैं। मेरे भाग्य से माघ महीने का शुक्ल पक्ष आ गया। अब मैं शरीर त्यागना चाहता हूँ । इसके पश्चात उन्होंने सब लोगों से प्रेमपूर्वक विदा माँगकर शरीर त्याग दिया।

 

© आशीष कुमार  

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