श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – “गुरु वंदना में अंगूठा…”।)
☆ व्यंग्य ☆ शिक्षक दिवस की पूर्व वेला में – ‘गुरु वंदना में अंगूठा…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
तीन चार दिन से रात की नींद गायब है, रिटायर होने के बाद कितना निरीह, कितना अकेला, कितना डरपोंक हो जाता है आदमी। इतने सालों से कहीं एसडीएम, कहीं कलेक्टर रहा, कहीं कमिश्नर रहा, कभी एक्साइज कमिश्नर रहा दिलेरी से दादागिरी करते हुए कभी ऐसा डर नहीं लगा जैसा पिछले तीन चार दिनों से लग रहा है।
घरवाली भी परेशान है और पूछ रही है कि तीन- चार दिनों से ऐसे डरे डरे मनहूस से क्यों लग रहे हो ? बता दोगे तो थोड़े राहत मिल जाएगी नहीं तो अंदर अंदर घुटने से हार्टफेल के केस ज्यादा बढ़ रहे हैं। हार्टफेल का नाम सुनकर सीने के नीचे खलबली सी मचने लगी है, शरीर पसीने से तरबतर हो गया, अभी तक अंदर अंदर डर से परेशान था अब पत्नी ने हार्टफेल का नाम ले दिया तो लगने लगा है कि बस अब जान जाने वाली है।
पत्नी सीने के ऊपर कान लगा लगाकर कह रही है ऐसा लग रहा है कि सीने के नीचे ट्रेन गुजर रही है। पत्नी घबरा जाती है कहती है अंदर क्या छुपा रखा है अभी बता दीजिए, मन हल्का हो जाएगा। पत्नी नहीं मानी तो बताना ही पड़ा, सुनो, दरअसल हमारे स्कूल वाले बहुत सालों से 5 सितम्बर को या आसपास के रविवार को गुरुवंदन समारोह मनाते हैं अपने बैच मैं जुगाड़बाजी और चमचागिरी में सबसे तेज था तो वो गुण सब जगह काम आया और मैं सबसे ऊंचे पद पर पहुंच गया। शीर्ष पद से रिटायर हुआ तो उन्होंने मुझे मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया और दस दिन पहले हमसे स्वीकृति भी ले ली, कार्ड, स्मारिका वगैरह सब छपवा लिए।
पत्नी – ये तो बहुत गर्व की बात है, ऐसा मौका सबको कहां मिलता है, आप तो बहुत भाग्यशाली हैं। फिर परेशान क्यों हो रहे हैं, डर किस बात का है जो तीन चार दिन से सो भी नहीं पा रहे हो ?
सुनो तो…. पता चला है कि ये गुरु वंदन समारोह करने वाले बहुत चालाक हैं, अपने नाम और फोटो छपवाने और पैसे इकट्ठा करने के लिए हर साल ये नित नए प्रयोग करते रहते हैं जिससे ये लोग मीडिया में छा जाएं, एक मित्र ने चुपके से खबर दी है कि इस बार के गुरू वंदन समारोह में ये लोग मुख्य अतिथि का अंगूठा काटकर 100 साल उम्र के गुरू जी को देने वाले हैं। आजकल मोबाइल में लाइव दिखाने की सुविधा है ही, सुनने में आया है कि इन लोगों ने चुपके चुपके प्रचारित किया है कि इस बार के मुख्य अतिथि की इच्छा है कि वे अपने पुराने गुरुजी को अपना अंगूठा भेंट करेंगे, मीडिया की त्योरियां चढ़ गईं हैं।
पत्नी – बड़े क्रूर हैं वे लोग…
सुनो न, आप तो तेज तर्रार खूंखार कलेक्टर रहे हो, पुलिस को पहले से खबर कर दो।
— यार तुम समझती नहीं हो फिरी में बहुत बदनामी हो जाएगी, और मुख्य अतिथि बनने का सुख भी नहीं भोगने मिलेगा क्योंकि ये पुलिस वाले चुपके से सब कुछ मीडिया वालों को बता देते हैं, गुरु वंदन समारोह के दिन सुबह से अखबार में आ गया तो 5 सितम्बर वाला गुरु शिष्य परंपरा का दिन बदनाम हो जाएगा।
पत्नी – फिर एक काम करो आपको घबराहट तो हो ही रही है, अंगूठा कटने का डर भी लग रहा है तो ज्यादा अच्छा है कि दो चार दिन के लिए अस्पताल में भर्ती हो जाएं, ‘सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी’ …. 5 सितम्बर को बहुत लोग आपसे आशीर्वाद लेने अस्पताल भी आएंगे, अखबारों में भी आपका नाम हो जाएगा और अंगूठा काटने का आयोजकों का प्लान भी फेल हो जाएगा।
— पर उन्होंने अचानक किसी और को मुख्य अतिथि की कुर्सी में बैठा दिया और उसका भरपूर सम्मान किया तो …. ‘दोनो दीन से गये पाणे, हलुआ मिले न माणे’ जैसी बात हो जाएगी।
पत्नी – फिर एक काम करो, अंदर के डर को खतम करो और चुपचाप सो जाओ, जब 5 सितम्बर आएगा तब देखेंगे।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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