श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# विषमता… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 147 ☆

☆ # विषमता#

बेचारा जगतू,

आधी रोटी से पेट भरता है

भूख, गरीबी सहकर भी

चुप रहता है

जिंदा रहना उसकी मजबूरी है

दुःखी मन से वह सब सहता है

 

उसके घर में पत्नी बीमार है

बेटा बेरोजगार है

कैसे जरूरतों को पूरा करें

सर पे कितना चढ़ा उधार है

 

दिन भर मेहनत मशक्कत करता है

उसका खून पानी बनकर बहता है

झोपड़पट्टी की एक झोपड़ी में

परिवार संग रहता है

 

सोचता है, शिक्षित बेटा

कब नौकरी पायेगा

पैसा कमाकर कब लायेगा

कैसे दूर होगी उसकी निर्धनता

बेटा कब गृहस्थी में हाथ बटाएगा

 

यही हर निर्धन व्यक्ति की व्यथा है

गरीब, असहाय, लाचार की कथा है

दिन-रात मेहनत करके भी

एक वक्त भूखे रहने की प्रथा है

 

गर जगतू के अंदर विषमता का जहर

यूं ही पलता जायेगा ?

वो झूठ, मक्कारी से सदा ऐसे ही

छलता जायेगा

तो यह आक्रोश कहीं ज्वाला

ना बन जाए

फिर यह देश लपटों से

जलता ही जायेगा/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments