श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश – पेंशनर मिलन कार्यक्रम” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 51 ☆ देश-परदेश – पेंशनर मिलन कार्यक्रम ☆ श्री राकेश कुमार ☆
सेवानिवृति के बाद पेंशनर संघ नामक संगठन यदा कदा अपने सदस्यों को होली/ दीपावली के पश्चात एकत्र होकर सभी को मिलने का एक अवसर प्रदान करता हैं। किसी भी आयोजन की व्यवस्था बड़ा कठिन कार्य होता हैं। घर के चार सदस्य भी एक साथ, एक जैसा भोजन करने में अनेक प्रकार की नुक्ताचीनी करते है।
पुरानी कहावत है कि पांच मेंढकों को एक साथ तराज़ू में तोलना नामुनकिन होता है। बड़े आयोजन जहां एक सौ से अधिक व्यक्ति भाग ले रहे हों, तो “जितने मुंह उतनी बातें” वाला सिद्धांत लागू हो जाता हैं।
कम खर्च में उत्तम सुविधाएं और मनभावन भोजन की व्यवस्था करना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है।
आयोजन की शुरुआत होती है, निमंत्रण के साथ। अधिकतर सदस्यों को जब दूरभाष द्वारा संपर्क किया जाता है, तो वो कार्यक्रम में आने की पुष्टि करने के लिए नए नए बहाने बनाने लगते हैं। साधारणतः जब भी सेवानिवृत साथियों से बात करने पर उनका कथन रहता है कि समय नहीं कटता, फुरसत से फुरसत नहीं मिलती। लेकिन वर्ष में होने वाले दो आयोजनों में भाग लेने के समय वो अपनी व्यस्तता का हवाला देने लगते हैं। ऐसा दोहरा मापदंड क्यों ?
© श्री राकेश कुमार
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