श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “कहाँ चले?…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 24 ☆ कहाँ चले?… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
रुको बंधुवर!
नम आँखों में टूटे सपने
लेकर कहाँ चले?
अपनों से अपनी सी बातें
भला करेगा कौन
दरवाज़ों पर बिठा चुप्पियाँ
बतियाते से मौन
सुनो बंधुवर!
यह परिपाटी फिर से डसने,
देकर कहाँ चले?
पर्वत से ऊँचे मनसूबे
नहीं हमारे यार
माटी की सौंधी सी ख़ुशबू
और तनिक सा प्यार
कहो बंधुवर!
इतना मँहगा सौदा करने
आख़िर कहाँ चले?
दर्द पराया काँधों लादे
बाँध ह्रदय से पीर
ख़ुशियों के सब आँगन सोंपे
होकर चले फ़क़ीर
अहो बंधुवर!
मन को छोड़ अकेला मरने
डरकर कहाँ चले?
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈