श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – “हिंदी”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 184 ☆
☆ संतोष के दोहे – “हिन्दी” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
☆
हिंदी बोलो गर्व से, हिंदी हिन्दुस्तान
हम सबका बढ़ता सदा, हिंदी से ही मान
☆
हिंदी हिय में राखिये, करके ऊँचा माथ
रखें कभी मत हीनता, हिंदी जब हो साथ
☆
नमस्कार सब कर रहे, विश्व पटल पर आज
हिंदी सब को जोड़ती, करिये उस पर नाज़
☆
पखवाड़े में सिमट कर, हिंदी करे पुकार
सीमित मुझे न कीजिये, करिये अब विस्तार
☆
निज भाषा मत छोड़िये, यह अपनी पहचान
अंगेजी के रोब से, उबरो अब श्रीमान
☆
अंग्रेजी के आपने, खूब पखारे पाँव
हिंदी से दूरी रखी, उसे छोड़ कर गाँव
☆
हिंदी भाषा प्रेम की, हिंदी अपना धर्म
संस्कार पोषित करे, हिंदी से सब कर्म
☆
बने राष्ट्रभाषा सपदि, सबकी यह दरकार
जल्दी से इस बात पर, निर्णय ले सरकार
☆
मिले मान- सम्मान सब, हिंदी से संतोष
हिंदी का आदर करें, बिन खोजे ही दोष
☆
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈