श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “इश्क़ के सौदे में मोल भाव जायज़ नहीं…”)

? ग़ज़ल # 93 – “इश्क़ के सौदे में मोल भाव जायज़ नहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

हमने राज़े मुहब्बत छुपा कर देख लिया,

दिलवर से दिल भी लगा कर देख लिया। 

इश्क़ के सौदे में मोल भाव जायज़ नहीं,

मुहब्बत में दिल भी ठगा कर देख लिया।

हम दुनियावी लेनदेन में हमेशा कच्चे रहे,

हमने ग़मों का हिसाब लगाकर देख लिया।

बस एक ही  मुदावा बचा बीमार के पास,

चुप को उसने  गले लगा कर देख लिया।

दिलजोई में  जो थे  हमारे हमराज़ कभी,

उन्हें भी हमने ग़ैर  बना कर देख लिया।

आँसू बचा कर क्या हुआ हासिल ‘आतिश’

सबने तुम्हें भी खूब रुला कर देख लिया। 

दिल की हमारी झोली रही ख़ाली की ख़ाली,

खुद को ग़म समुंदर में डुबा कर देख लिया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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