श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक शिक्षाप्रद आलेख  बर्फ की आत्मकथा)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 151 ☆

 ☆ आलेख – “बर्फ की आत्मकथा” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

मैं पानी का ठोस रूप हूं. द्रव्य रूप में पानी बन कर रहता हूं. जब वातावरण का ताप शून्य तक पहुंच जाता है तो मैं जम जाता हूं. मेरे इसी रूप को बर्फ कहते हैं. मेरा रासायनिक सूत्र (H2O) है. यही पानी का सूत्र भी है. यानी मेरे अंदर हाइरड्रोजन के दो अणु और आक्सीजन के एक अणु मिले होते हैं.

जब पेड़ पौधे वातावरण से कार्बन गैस से कार्बन लेते हैं तब मेरे पानी से हाइड्रोजन ले कर शर्करा बनाते हैं. इसे ही पौधों की भोजन बनाने की प्रक्रिया कहते हैं. इसे हिंदी में प्रकाश संश्लेषण कहते हैं. इस क्रिया में मेरे अंदर की आक्सीजन वातावरण में मुक्त हो जाती है.

बर्फ अपनी आत्मकथा सुना रहा था. सामने बैठा हुआ बेक्टो ध्यान से सुन रहा था.

बर्फ ने कहना जारी रखा. ध्रुवों पर तापमान शून्य के करीब रहता है. इस कारण वहां का पानी जमा रहता है. इस जमे हुए पानी के पहाड़ को हिमनद कहते हैं. ये बर्फ के रूप में जमा होता है. यह सुन कर बेक्टो की आंखें फैल गई.

तुम सोच रहे हो कि सूर्य के प्रकाश से मेरा पानी पिघलता नहीं होगा ? बिलकुल नहीं. सूर्य का प्रकाश मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाता है. इस कारण जानते हो ?  नहीं ना. तो सुनो. सूर्य का जितना प्रकाश मेरे ऊपर पड़ता है उतना ही मैं वापस वातावरण में लौट देता हूँ. मैं सूर्य के प्रकाश को अपने पास नहीं रखता हूं. इसे वैसा ही वातावरण में लौटा देता हूं जैस यह मेरे पास आता है.

यही वजह है कि बर्फिली जगह लोगों को काला चश्मा लगाना पड़ता है. यहां पर प्रकाश बहुत तीव्र होता है. इस की चमक से आंखे खराब हो सकती है. इसलिए वे आंखों पर चश्मा लगाते हैं.

ओह ! बेक्टो की आंखे चमक गई. उस ने पूछा कि सूर्य का प्रकाश उसे पिघलाता नहीं है.

तब बर्फ ने कहा कि सूर्य का प्रकाश मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाता है. इस का कारण यह है कि मैं बर्फ की कोई ऊष्मा अपने अंदर ग्रहण नहीं करता हूं. मेरी मोटी मोटी पर्त भी पारदर्शी होती है. वे प्रकाश को आरपार पहूंचा देती है. या वातावरण में लौटा देती है. इसलिए मैं पिघलता नहीं है.

यदि मैं पिघल जाऊ तो जानते हो क्या होगा ? बर्फ के पूछने पर बेक्टो ने नहीं में गरदन हिला दी. तब बर्फ बोला कि यदि मेरी सभी बर्फ पिघल जाए तो इस से समुद्र के सतह पर 60 मीटर ऊंची दीवार बन जाएगी. इस पानी की दीवार में धरती की आधी आबादी डूब कर मर जाए.

यह सुन कर बेक्टो चकित रह गया.

बर्फ ने बोलना जारी रखा. मैं पिघलता नहीं हूं इसलिए हिमनद के रूप में जमा रहता हूं. यदि कभी मैं पिघलता हूं तो इस का कारण आसपास के वातावरण के तापमान बढ़ने से पिघलता हूं. वैसे जैसा रहता हूं वैसा जमा रहता हूं. यही मेरी कहानी है.

बेक्टो को बर्फ की कहानी अच्छी लगी. उस ने कहा कि आप तो सूर्य से भी नहीं डरते हैं.

इस पर बर्फ बोला कि सूर्य मेरा कुछ नहीं बिगाड़ता है. कारण यह है कि मैं ताप को ग्रहण नहीं करता हूं. इसलिए वातावरण से प्राप्त सूर्य के ताप को उसी के पास रहने देता हूँ. यदि तुम भी किसी की बुराई ग्रहण न करें तो तुम्हारी अंदर बुराई नहीं आ सकती है. तुम मेरी तरह अच्छाई ग्रहण करते रहो तो तुम भी मेरी तरह सरल और स्वच्छ बन सकते हो. यह कहते ही बर्फ चुप हो गया.

बेक्टो सोया हुआ था. उस की आंखे खुल गई. उस ने एक अच्छा सपना देखा था. इस सपने में वह बर्फ से आत्मकथा सुन रहा था. यह आत्मकथा बड़ी मज़ेदार थी इसलिए वह मुस्करा दिया.

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

२३/०३/२०१९

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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