श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 18 ☆
☆ कविता ☆ “राज़ की बात…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
बता दूँ आज तुम्हें
बात ये राज़ की
दिखाऊं आज तुम्हें
चाबी जिंदगी की
बात है ऐसे डर की
मेरी तुम्हारी और सब की
बड़ी परेशानी है दिल की
अनहोनी के हो जाने की
चाहें जितनी पूजा कर लो
बात ये तो तय है
आज नहीं तो कल
वो तो आनी ही है
वो ना प्रार्थनाओं से डरती
ना ही आसुओं से है बुझती
गर अनादि अनंत कुछ है
तो वो है बस अनहोनी
अच्छा है अगर
डर को उसके भूल जाओ
हसीन पल ये जिंदगी के
भला क्यों न आजमाओ
वो तो कुछ तुमसे
छीनकर जानी ही है
जो ख़ुशी हाथ में है
उससे क्यूं हाथ छुड़ाओ
दे कर जाती है गर वो
चार पल दुख के
कब्ज़ा क्यूं न लो
पल आठ ख़ुशी के
यहीं एक रास्ता है
बाकी बस रोना है
सांस चलती आज ये,
सुन मेरी सोणिए..
सांस में तुम्हारी मिलानी है….
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈