श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# तो ही इंकलाब लाओगे? #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 151 ☆

☆ # तो ही इंकलाब लाओगे? #

पांव के छालों को मत देखो

इनमें क्या पाओगे ?

ज़ख्म ही ज़ख्म है

इतना मरहम कहां से लाओगे ?

 

कांटों भरी सड़कों पर

कोमल पुष्प ढूंढते हो

कांटों का दंश

क्या कभी भूल पाओगे?

 

कीलें बिछा दी है

जमाने ने तुम्हारी राहों में

इनसे बचकर क्या

तुम चल पाओगे?

 

आंधियां, तूफान तो

रोज उठाते हैं

नशेमन पर बिजलियां

रोज गिराते हैं

इन बवंडरों से

तुम कैसे टकराओगे ?

 

हारना कैसा जीतने की सोचो

दुश्वारियों को ताकत से रोको

घुट घुट कर जीना

कोई जीना है

मौत से लड़ोगे

तो ही इंकलाब लाओगे? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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