डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – मैं तुम्हारा हूँ…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 160 – गीत – मैं तुम्हारा हूँ…
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मैं तुम्हारा हूँ
कल तलक मुझको गलत समझा नहीं तुमने
आज दाखिल कर दिया है गुनहगारों में।
जानती हो दर्द क्या मैंने सहा है।
बेहिचक हो पाप भी मन का कहा है
एक निर्झर की तरह बहता रहा हूँ
मन हमेशा एक दरपन सा रहा है।
भूल आदम से हुई थी जानती हो
आदमी को देवता भी मानती हो
हूँ नहीं आदम मगर मैं आदमी हूँ
और कैसा बस तुम्हीं पहचानती हो।
मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारा ही रहूँगा
और किसके सामने सब कुछ कहूँगा
देह के तट पर भले हो भीड़ लेकिन
साफ झरने की तरह बहता रहूँगा।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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