श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक हृदयस्पर्शी लघुकथा “उष्णता”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 174 ☆
☆ लघुकथा – 🌞उष्णता🌞 ☆
ठंड की अधिकता को देखते आज कक्षा में उपस्थित सभी बच्चों को ठंड से बचने और मिलने वाली गर्मी यानी उष्णता के बारे में बताया जा रहा था।
सूर्य से मिलने वाली उष्णता का जीवन में कितना महत्व है। गर्म कपड़े पहन हम अपने शरीर को कैसे गर्म रख सकते हैं। अध्यापिका ने बड़े ही सहज ढंग से मुर्गी के अंडे को मुर्गी कैसे अपने पंखों के नीचे दबाकर उसे गर्म करती है। यह भी बता रही थी।
वेदिका बड़े ही गौर से सब सुन रही थी। इसी बीच अध्यापिका ने बताया की मांँ के आंचल की उष्णता से एक नया जीवन मिलता है। और गर्भ से एक नया जीव जन्म लेता है यानी कि गर्भ में भी बालक पलता और संवरता है।
वेदिका के बाल सुलभ मन में माँ का स्पर्श क्या होता है, उसे नहीं मालूम था। क्योंकि बताते हैं वेदिका अभी संभल भी नहीं पाई थी कि वह अपनी माँ को खो चुकी थी।
पिताजी ने अपने ऊपर सारा भार लेकर उसे माता-पिता बन कर पाला और धीरे-धीरे वह बड़ी हुई। परिवार के बड़े बुजुर्गों के कहने पर पिताजी ने दूसरी शादी कर लिया।
सौतेली मां ब्याह कर आई। बहुत अच्छी थी। वेदिका का मन बहुत कोमल था। माँ भी उसका बहुत ख्याल और प्यार करने लगी, परंतु कभी उसे ममता से भर कर गले या सीने से नहीं लगाई।
उसकी आवश्यकता, जरूरत की सारी चीज पूरी करती परंतु कहीं ना कहीं ममता के आँचल के लिए तरस रही वेदिका बहुत ही परेशान रहती थी।
आज दिन का तापमान बहुत कम था। ठंड लिए बारिश होने लगी। वेदिका का मन आज सुबह से खराब था। शायद उसे हल्की सी ताप भी चढ़ी थी। वह फिर भी स्कूल गई थी।
स्कूल में अचानक बहुत तेज बुखार और चक्कर की वजह से वह गिर गई।
अध्यापिका ने उसे कसकर गले लगा लिया। हल्की हाथ की थपकी देती रही और वेदिका कुछ न बोल सकी।
घर में फोन करके मम्मी – पापा को बुलाया गया। अध्यापिका ने वेदिका के हृदय भाव को उसकी मम्मी से बात करके, उसे अधिक से अधिक प्यार दुलार देने को कहा।
माँ की आँखें ममता से भर गई। वेदिका के मासूम सवाल को अध्यापिका ने उसकी माँ से बताया… कि वह मुर्गी के अंडे और उससे बनते चूज़े को कैसे अपनी नरम पंखों से गर्म करके जीवन देती है। यह सवाल उसके दिलों दिमाग पर था।
माँ ने वेदिका को गोद में लेकर आज हृदय से चिपका कर बालों पर हाथ फेरने लगी। वेदिका की आँखों से आँसू लगातार बहने लगी। वह कसकर अपनी माँ को बाहों में समेट आज जीवन भर की उष्णता पा चुकी थीं। पिताजी ने हौले से अपनी आँखें पोछते कहा… आज मैं अपने जीवन और जीवन की परीक्षा से जीत गया।
वेदिका भरी ठंड में माँ की ममता रुपी उष्णता से भर गई थीं।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈