श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# झुर्रियां#”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 159 ☆
☆ # झुर्रियां # ☆
वक्त की रफ्तार को रोककर
अनुत्तरित प्रश्नों को झोंक कर
उम्र का एहसास दिलाती है
झुर्रियां
आंखों के आसपास
हाथों पर साथ-साथ
सुराहीदार गर्दन पर
उभर आती है
झुर्रियां
जीने के ढंग का
तजुर्बे के रंग का
उम्र भर के जंग का
आभास दिलाती है
झुर्रियां
चेहरे की चमक के
नयनों की दमक के
काया की गमक के
कई अनकहे राज़
छुपाती है
झुर्रियां
माथे की लकीर का
कहने को अधीर का
दिखने को फ़कीर का
गूढ़ रहस्य
कह जाती है
झुर्रियां
बागों में तरुणाई
लेती मादक अंगड़ाई
बहती मदमस्त पुरवाई
देखकर
अपने बीते दिनों को याद कर
मुस्कुराती है
झुर्रियां
जीवन एक खेला है
सांसों का मेला है
यादों का रेला है
हौले हौले समझातीं है
झुर्रियां
अपनी सल्तनत है
अपनी अमानत है
अपनी विरासत है
ज़माने से जातें जातें
यह सिद्ध कर जाती है
झुर्रियां /
© श्याम खापर्डे
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