सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा कोहरे के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “तुम आना”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 26 ☆
☆ तुम आना ☆
तुम आना,
वासंती किरणों को ओढ़कर,
सुगन्धित हवाओं में लपेटकर,
तुम आना ।
तुम आना ,
रिमझिम बूँदों में भीग कर,
कोहरे की श्वेत शाल पहनकर ,
तुम आना ।
तुम आना ,
नंगे पाँव, ओस पर चलकर ,
पायल को खनकाकर,
तुम आना ।
तुम आना,
केशों को खुला छोड़ कर ,
नदिया सी बल खाकर,
तुम आना ।
तुम आना
अंजुली में सपने संजोकर,
मेरी अंजुली में भर देने,
तुम आना ।
© सुजाता काळे
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684