श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 66 ☆ देश-परदेश – सेना दिवस ☆ श्री राकेश कुमार ☆
आज पंद्रह जनवरी को प्रतिवर्षनुसार देश में सेना दिवस मनाया जाता हैं। आज के ही दिन 1949 को फील्ड मार्शल के एम करियप्पा ने जनरल फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान संभाली थी।
हमारे निकट परिवार के सदस्यों में से कोई भी सुरक्षा बलों की सेवा में तो नहीं है, परंतु बैंक सेवा के आरंभिक दशक में प्रतिदिन हमारे सैनिक भाइयों की सेवा का मौका अवश्य मिला। सेना की सभी यूनिट्स के खाते जबलपुर मुख्य शाखा में ही थे।
सैनिकों का भोलापन, कृतज्ञता की भावना उनके व्यवहार में झलकती है, इस सब को बहुत करीब से देखने और अनुभव करने का अवसर कुछ वर्षों तक रहा।
बैंक के बाहर भी जब कभी सेना का कोई सदस्य अचानक मिल जाता था, तो उतना ही आदर और सम्मान देता था, जितना वो बैंक में देता था। अनेक बार हम उनको सिविल ड्रेस में पहचान नहीं पाते थे, लेकिन वो आगे बढ़ कर हमेशा “जय हिंद” से अभिवादन करते थे। बैंक के साथियों के विवाह में आर्मी कैंटीन से ही वीआईपी सूटकेस और बिजली के पंखे क्रय कर साथियों को सामूहिक भेंट स्वरूप दी जाती थी।
कुछ दिन पूर्व फील्ड मार्शल मानेक शॉ की बायोपिक्स (फिल्म) देखी तो सेना के बारे में नई जानकारियां भी मिली।
ग्रामीण शाखा अंधेरी देवरी (ब्यावर) राजस्थान में पदस्थापना के समय शाखा में बैंक गार्ड श्री पुखराज के बारे में जानकारी प्राप्त हुई कि सेना में उन्होंने मानेक शॉ के निजी वाहन चालक के रूप में तीन वर्ष की सेवाएं देने के पश्चात प्रधान मंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के लिए एंबेसडर कार कुछ वर्ष तक चलाई थी।
पुखराज जी से मानेक शॉ के बहुत सारे किस्से और जानकारियों का आनंद भी लिया। पुखराज जी के शब्दों में मानेक शॉ बहुत ही सरल और मिलनसार व्यक्ति थे। जब सैनिक मेस में भोजन कर रहे होते थे, और यदि वो भी भोजन के समय वहां आ जाते, तो किसी भी सैनिक को खड़े होकर सम्मान या भोजन के मध्य में जय हिंद कहने की भी मनाही थी। उनका सिद्धांत था, कि भोजन ग्रहण के समय सब बराबर होते हैं।
आज सेना दिवस पर देश के सभी सुरक्षा बलों को आदर सहित नमन और अभिवादन।
© श्री राकेश कुमार
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