श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 112 – मनोज के दोहे… ☆
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1 धुंध
धुंध बढ़ा है इस कदर, दिखे न सच्ची राह।
राजनीति में बढ़ रही, धन-लिप्सा की चाह।।
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2 कुहासा
घोर कुहासा रात भर, पथ में सोते लोग।
मानवता को ढूँढ़ते, आश्रय का शुभ-योग।।
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3 कोहरा
मीलों छाया कोहरा, नहीं सूझती राह ।
प्रियतम-बाट निहारती, घर जाने की चाह।।
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4 बर्फ
जमती रिश्तों में बर्फ, हटे बने जब बात।
रिश्तों में हो ताजगी, अच्छी गुजरे रात।।
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5 शरद
शरद-काल मनमोहता, पंछी करें किलोल।
फूल-खिलें बगिया-हँसे, प्रकृति लगे अनमोल।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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