डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – बिना मोल अब तेरे हाथ बिकानी हूँ…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 174 – गीत – बिना मोल अब तेरे हाथ बिकानी हूँ…
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मोल लगाया था जग ने मैं बिकी नहीं
बिना मोल अब तेरे हाथ बिकानी हूँ
मंत्र चलाया, जादू डाला
तार तार चादरिया
झूठ खबर ही भिजवा देता
मैं आती साँवरिया
मैं भी तो मीरा सी दरद दिवानी हूँ।
जाने किस चुम्बक ने खींचा
खिंची चली में आई
क्या है तेरा कर्ज पावना
आज करूं भरपाई
तुम कहते मधुमती मुझे, मैं पानी हूँ।
मां पहले ही भेज दिया था
देह फूल अब लाई
करो विसर्जित मां का संसार प्राणों की पहुनाई
रंगी पिया के रंग में प्रेम दिवानी।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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