श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “मौन…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 39 ☆ मौन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
तुम कुछ कहो
न हम कुछ कहें
हम तुम करें न बात
यूँ ही गुमसुम
रहकर सारी
कट जायेगी रात।
साँसों से हो जाये
साँसों का परिचय
धड़कन से जुड़ जाये
धड़कन की हर लय
अधर सहें
अधरों से मिलकर
कोमल से आघात।
महक रहा है
रूप चाँदनी से उपवन
चटक रहा है
प्रतिबिंबों से हर दर्पन
मधुरस छलके
आलिंगन में
सिमटे हों जज़्बात ।
अलक पलक कोरों से
छलके मधुशाला
बहका बहका फिरे
मीत मन मतवाला
मौन तोड़ती
हर अभिलाषा
माँग रही सौग़ात।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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