डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – सुबह सुबह देखा है सपना…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 176 – गीत – सुबह सुबह देखा है सपना…
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सुबह सुबह देखा है सपना
तेरी गोदी में सिर अपना।
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अवचेतन में जो कुछ होता
वही स्वप्न में ढल जाता है
अंधे को दिख जाती दुनिया
पगविहीन भी चल जाता है।
ऐसा ही कुछ किस्सा अपना
सुबह सुबह देखा है सपना।
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कहते सपने वे सच होते
जो भी देखे जायें सबेरे
कितनी आँखें सच्ची होंगी
कितने लोग तुम्हें हैं घेरे।
अपना तो जीवन ही सपना
सुबह सुबह देखा है सपना
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सुबह सुबह देखा है सपना
तेरी गोदी में सिर अपना।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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