श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 103 ☆
☆ ग़ज़ल – वक्त किस्मत हालात किससे शिकवा करें ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
[1] मतला
अपने ही आज अब क्यों बेगाने हो गए।
नहीं मिलने के ही लाखों बहाने हो गए।।
[2] हुस्ने मतला
उनके अब तो आसमानी निशाने हो गए।
न जाने कौन से उनके दोस्ताने हो गए।।
[3]
अब वो मुस्कराते नहीं हैं देख कर भी।
तरीके बात करने के अनजाने हो गए।।
[4]
नए दौर के नए चलन में अब वो आए हैं।
लगता है कि हम तो माल पुराने हो गए।।
[5]
नजर से नजर देख कर अब मिलाते नहीं।
अंदाज ही उनके नजर को बचाने हो गए।।
[6]
देख देख कर ही रुख की बेरुखी उनकी।
हमारे अब तो रास्ते सारे ही वीराने हो गए।।
[7]
वक्त किस्मत हालात किससे शिकवा करें।
दुनिया सामने सारे अफसाने फसाने हो गए।।
[8]
जिनके बिन कटती नहीं थी इक पल जिंदगी।
बात करे हुए उनसे ही अब जमाने हो गए।।
[9]
हंस समझ कर बदलते तौर तरीके आज के।
शहर में कदम कदम पर अब मयखाने हो गए।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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