डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – मैं तुमसे नाराज नहीं…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 178 – गीत – मैं तुमसे नाराज नहीं…
☆
सच कहता हूँ बोलूँगा,
मैं तुमसे नाराज नहीं।
*
खामोशी का शाल ओढ़कर, तुम बैठी हो कोने में
बाँच रही हो सुधि की पाती, कितना पाया खोने में।
बिखरे बिखरे केश तुम्हारे मुख पर ऐसे झूम रहे
जैसे चंदा के दरवाजे, आवारा घन घूम रहे।
और तुम्हारी सौंधी अँगुली कुछ लिखती है धूल में।
शब्द होंठ में ऐसे बन्दी जैसे भँवरा फूल में।
बिछल गया माथे से आँचल किस दुनिया में खोई हो
लगता है तुम आज रातभर चुपके चुपके रोई हो।
रोना तो है सिर्फ शिकायत, इसकी उम्रदराज नहीं
टूट टूट कर जो न बजा हो, ऐसा कोई साज नहीं।
ओ पगली, नाराज कहीं करता है कोई अपनों को
दुनिया कितना चाहा करती सुबह सुबह के सपनों को
*
जो शब्दों में प्रकट हुआ वह पाप भले हो प्यार नहीं
मेरा प्यार पाप बन जाये, यह मुझको स्वीकार नहीं।
शबनम की शहजादी का भी प्यार नहीं सरनाम हुआ
जिस बादल ने आँसू गाये, सिर्फ वही घनश्याम हुआ।
तुझे चाहता हूँ मैं कितना, पूछ न अब मेरे मन से
कोई कितनी प्रीति करेगा, खुद ही अपने जीवन से।
मेरे मन के शीश महल सा वह यमुना का ताज नहीं
शाहजहाँ से मैं ज्यादा हूँ, तू बढ़कर मुमताज कहीं।
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈