डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनके द्वारा रचित “भावना के दोहे “।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 34 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
चंचरीक की गूंज से,
खिलती कली हजार।
अब तो तुम समझो मुझे,
तुम मेरा संसार।।
पतझर झरता शाख से,
वस्त्र बदलना यार।
नई कली के रूप का
हमें है इंतजार।।
मन उपवन में खिल रहे,
देखो पुष्प हजार।
धरा प्रफुल्लित देखकर,
झरते हरसिंगार।।
गुलशन के गुल देखकर
छाई ग़ज़ब बहार।
आया फागुन झूम के,
रंगों की बौछार ।।
यश वैभव का गेह में,
रहे हमेशा वास।
खुशियों का छाया रहे,
जीवन में मधुमास।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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