(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता – अपरिग्रह।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 263 ☆
कविता – अपरिग्रह
हवाई यात्रा की
सिक्योरिटी के पल
सच्चा त्याग अपरिग्रह सिखाते हैं
सब कुछ ट्रे में …और आप स्कैनर में !
सोचता हूं
मन की गठरी में बंधे
ईर्ष्या, चिंता, अभिमान
लोभ, वगैरह वगैरह का वजन
ढोते लोग यूं ही पार हो जाते हैं क्यूं, बिना किसी लोड लिमिट ।
काश
कोई स्कैनर
पकड़ पाता
मन की भी
कलुषता !
और उस पार
पहुंचते
पवित्र, निष्कलंक इंसान
ऊंची उड़ान भरने।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
लंदन से
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