प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक अप्रतिम रचना – “हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण..” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ ‘हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण‘ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण
सुख, विभव, आनंद-दायक, शांतिप्रद प्रभु तवचरण।।
कामना तव कृपा की ले नाथ हम आये शरण
आशुतोष अपारदानी कीजिये सुख दुख हरण।।1।।
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हृदय की सब जानते हो भक्त के, भगवान तुम
तुम्हीं संरक्षक जगत के प्राणियों के प्राण तुम।।
विधि न मालूम अर्चना की भावना के हैं सुमन
नेह आलोकित हृदय है, धवल हिम सा शुद्ध मन।।2।।
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तमावृत हर पथ जगत का मोह के अंधियार से
बढ़ रहे हैं कष्ट नित नव स्वार्थ के विस्तार से।।
है भयावह रात काली, कहीं न दिखती है किरण
तव कृपा की कामना ले हैं बिछे पथ में नयन।।3।।
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दीजिये वर ‘’कल’’ बने सत्यं शिवं शुभ सुंदरम
मन में करूणा का उदय हो, क्लेश, प्रभु हो जायें कम।।
अश्रु- जल कर सके उठती द्वेष- लपटों का शमन
विनत तव चरणों में शंकर हमारा शत शत नमन।।4।।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈