(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता – लंदन से 2 – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 266 ☆
कविता – लंदन से 2 – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर
मोबाईल इस कदर समा गया है जिंदगी में
कैलेंडर कागज के
बदलते कहां हैं अब
साल , दिन ,महीने , तारीखें, समय सब कैद हैं टच स्क्रीन में
वैसे भी
अंतर क्या होता है
आखिरी तारीख में बीतते साल की
और पहले दिन में नए साल के ,
जिंदगी तो वैसी ही दुश्वार बनी रहती है ।
हां दुनियां भर में
जश्न , रोशनी , आतिशबाजी
जरूर होती है
रस्म अदायगी की साल के स्वागत में
टूटने को नए संकल्प लिए जाते हैं
गिफ्ट का आदान प्रदान होता है ,
ली दी जाती है डायरी बेवजह
लिखता भला कौन है अब डायरी
सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है ।
जब हम मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ टच करें
हौले से मन
अपने बिसर रहे कांटेक्ट्स
और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने स्टेटस पर
हर
सूर्योदय के साथ
जहां जागें,
सोएं वहां से कुछ आगे बढ़कर
* * * *
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
लंदन से
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈