श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। ई -अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार आप आत्मसात कर सकेंगे एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है – “व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय”।)
☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆
☆ “व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
कवि, व्यंग्यकार, सम्पादक श्रीबाल पाण्डेय जी का जन्म 19जुलाई1921 को नरसिंहपुर जिले के बिलहरा गांव में हुआ था,उनका पहला काव्य संग्रह 1958 में प्रकाशित हुआ था, ‘जब मैंने मूंछ रखी’ निबंध संग्रह के अलावा कुछ व्यंग्य संग्रह भी प्रकाशित हुए और पसंद किए गए, व्यंग्य संग्रह ‘तीसरा कोना जुम्मन मियां का कहना है’के अलावा ‘माफ कीजिएगा हुजूर’ और ‘साहिब का अर्दली’ खूब चर्चित हुए थे। मानवीय संवेदनाएं उनकी कविताओं में कूट-कूट कर भरीं थीं,होटल में काम कर रहे छोटे से लड़के पर लिखी गई कविता पढ़कर हर पाठक की आंखें नम हो जातीं हैं, कविता में एक जगह आया है….
आज तक इसने चांद को देखा नहीं है,
हाथ में इसके सौभाग्य की कोई रेखा नहीं है,
श्रीबाल पाण्डेय जी ने साहित्यिक पत्रिका ‘सुधा’ का सम्पादन किया और ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की चर्चित पत्रिका ‘वसुधा’के प्रबंध सम्पादक रहे।वे लेखन के मामले में किसी के सामने कभी झुके नहीं, कभी किसी की पराधीनता स्वीकार नहीं की। वे हरिशंकर परसाई जी के बहुत करीबी थे। श्रीबाल पाण्डेय जी के बारे में लिखते हुए याद आ रहा है जब हम लोगों ने भारतीय स्टेट बैंक की तरफ से श्रीबाल पाण्डेय जी का सम्मान किया था।
साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ‘रचना’ के संयोजन में जबलपुर के मानस भवन में हर साल मार्च माह में अखिल भारतीय हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन आयोजित किया जाता था। जिसमें देश के हास्य व्यंग्य जगत के बड़े हस्ताक्षर शैल चतुर्वेदी, अशोक चक्रधर,शरद जोशी, सुरेन्द्र शर्मा, के पी सक्सेना जैसे अनेक ख्यातिलब्ध अपनी कविताएँ पढ़ते थे। रचना संस्था के संरक्षक श्री दादा धर्माधिकारी थे सचिव आनंद चौबे और संयोजन का जिम्मा हमारे ऊपर रहता था। देश भर में चर्चित इस अखिल भारतीय हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन के दौरान हम लोगों ने जबलपुर के प्रसिद्ध हास्य व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय का सम्मान करने की योजना बनाई, श्रीबाल पाण्डेय जी से सहमति लेने गए तो उनका मत था कि उन्हें सम्मान पुरस्कार से दूर रखा जाए तो अच्छा है फिर ऐनकेन प्रकारेण परसाई जी के मार्फत उन्हें तैयार किया गया।
इतने बड़े आयोजन में सबका सहयोग जरूरी होता है। लोगों से सम्पर्क किया गया बहुतों ने सहमति दी, कुछ ने मुंह बिचकाया, कई ने सहयोग किया। स्टेट बैंक अधिकारी संघ के पदाधिकारियों को समझाया। उस समय अधिकारी संघ के मुखिया श्री टी पी चौधरी ने हमारे प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकारा। तय किया गया कि स्टेट बैंक अधिकारी संघ ‘रचना’ संस्था के अखिल भारतीय हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन के दौरान श्रीबाल पाण्डेय जी का सम्मान करेगी।
हमने परसाई जी को श्रीबाल पाण्डेय के सम्मान की तैयारियों की जानकारी जब दी तो परसाई जी बहुत खुश हुए और उन्होंने श्रीबाल पाण्डेय के सम्मान की खुशी में तुरंत पत्र लिखकर हमें दिया।
श्रीबाल पाण्डेय जी उन दिनों बल्देवबाग चौक के आगे के एक पुराने से मकान में रहते थे। आयोजन के पहले शैल चतुर्वेदी को लेकर हम लोग उस मकान की सीढ़ियाँ चढ़े, शैल चतुर्वेदी डील – डौल में तगड़े मस्त – मौला इंसान थे, पहले तो उन्होंने खड़ी सीढ़ियाँ चढ़ने में आनाकानी की फिर हमने सहारा दिया तब वे ऊपर पहुंचे। श्रीबाल पाण्डेय जी सफेद कुर्ता पहन चुके थे और जनाना धोती की सलवटें ठीक कर कांच लगाने वाले ही थे कि उनके चरणों में शैल चतुर्वेदी दण्डवत प्रणाम करने लोट गए। श्रीबाल पाण्डेय की आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी पर वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे चूंकि उनकी जीभ में लकवा लग गया था। उस समय गुरु और शिष्य के अद्भुत भावुक मिलन का दृश्य देखने लायक था। श्रीबाल पाण्डेय शैल चतुर्वेदी के साहित्यिक गुरु थे।
मानस भवन में हजारों की भीड़ की करतल ध्वनि के साथ श्रीबाल पाण्डेय जी का सम्मान हुआ। मंच पर देश भर के नामचीन हास्य व्यंग्य कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया था पर उस दिन मंच से शैल चतुर्वेदी अपनी रचनाएँ नहीं सुना पाये थे क्योंकि गुरु से मिलने के बाद नेपथ्य में चुपचाप जाकर रो लेते थे और उनका गला बुरी तरह चोक हो गया था।
स्वर्गीय श्रीबाल पाण्डेय जी अपने जमाने के बड़े हास्य व्यंग्यकार माने जाते थे।जब परसाई जी ‘वसुधा’ पत्रिका निकालते थे तब वसुधा पत्रिका के प्रबंध सम्पादक पंडित श्रीबाल पाण्डेय हुआ करते थे। उनके “जब मैंने मूंछ रखी”, “साहब का अर्दली” जैसे कई व्यंग्य संग्रह पढ़कर पाठक अभी भी उनको याद करते हैं। उन्हें सादर नमन।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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