श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समिधा हवन की…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 46 ☆ समिधा हवन की… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
लिख रहा मौसम कहानी
दहकते अंगार वन की।
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धरा बेबस
जन्मती हर ओर बंजर
हवाओं के
हाथ में विष बुझे ख़ंजर
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ऋतुएँ तो बस आनी-जानी
रहीं गढ़ती व्यथा मन की।
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पर्वतों से
निकलकर बहती नदी है
डूब जिसमें
बह रही शापित सदी है
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बह गया आँखों का पानी
प्रतीक्षा में एक सपन की।
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साँस पर
छाया हुआ कुहरा घना है
प्रदूषण
इस सृष्टि की अवमानना है
*
यह चराचर जगत फ़ानी
बन गया समिधा हवन की।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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