श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक ज्ञानवर्धक आलेख – अजंता एलोरा से संख्यात्मक रूप से समृद्ध धामनार की गुफाएं)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 163 ☆

☆ आलेख – अजंता एलोरा से संख्यात्मक रूप से समृद्ध धामनार की गुफाएं ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

प्राचीनकाल में मालवा प्रांत शिक्षा, दीक्षा और धर्म का प्रचार का सबसे बड़ा व प्रभावी केंद्र रहा है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार वर्तमान दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग वाला रास्ता प्राचीन काल में व्यापारियों का भारत में व्यापार करने का प्रमुख मार्ग रहा है। इसी मार्ग की चंदनगिरी पहाड़ी पर धम्मनगर बसा हुआ था। यह वही इतिहास प्रसिद्ध धम्मनगर है जहां एक ही शैल को तराश कर धर्मराजेश्वर मंदिर, ब्राह्मण, बौद्ध और जैनन गुफाएं बनी हुई है।

संख्यात्मक दृष्टि से देखें तो अजंता एलोरा और धम्मनार की गुफाओं में सर्वाधिक गुफाएं यहीं धम्मनगर में स्थित है। दिल्ली मुंबई मार्ग के रास्ते में शामगढ़ रेल मार्ग से 22 किलोमीटर दूर स्थित चंदवासा गांव है। इसी गांव से 3 किलोमीटर अंदर जंगल में धम्मनगर जिस का वर्तमान नाम धमनार है, स्थित है। यहां के जंगल में स्थित चंदनगिरी पहाड़ियों के 2 किलोमीटर हिस्से में गुफाएं फैली हुई है।

इतिहासकार जेम्स टाड़ सन 1821 में यहां आए थे। तभी उन्होंने अश्वनाल की आकृति की श्रृंखला में बनी 235 गुफाओं की गणना की थी। तभी से यह दबी, छुपी और पर्यटन आकाश से विलुप्त हुई गुफाएं अस्तित्व में आई है। चूंकि ये गुफाएं चंबल अभ्यारण व आरक्षित वन क्षेत्र में होने से यहां ठहरने, खाने-पीने और आवास की व्यवस्था नहीं होने से यह पर्यटन क्षेत्र में विकसित नहीं हो पाई।

इसी कारण से इस क्षेत्र की अधिकांश गुफाएं रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील हो गई है। इतिहासकार जेम्स फर्गुसन ने यहां आकर गुफाओं की गणना की थी। उन्हें यहां की 170 गुफाएं महत्वपूर्ण लगी। इसी के बाद पुरातत्व विभाग ने इनकी गणना की। जिनकी संख्या 150 से अधिक निकली। इनमें से 51 गुफाओं को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया है।

जैसा कि पूर्व में बताया गया है यह क्षेत्र चंबल अभ्यारण में होने से यहां पर सुबह से शाम तक ही गुफाओं के दर्शन करने के लिए आया जा सकता है। यदि आप भूले-भटके संध्या के समय आ गए तो आपको 22 किलोमीटर दूर शामगढ़ जाकर विश्राम व खानपान आदि का लुफ्त उठाना पड़ेगा।

गुफाओं की संख्या व इतिहास की दृष्टि से देखें तो धम्मनगर की गुफा संख्या की दृष्टि से अजंता-एलोरा से सर्वाधिक ठहरती है। चूंकि अजंता की गुफाएं 200 से 600 ईसा पूर्व में निर्मित हुई थी। यहां बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रण और बारीकी शिल्पकार की गई है। वहीं एलोरा की गुफाएं पांचवी से सातवीं शताब्दी के बीच निर्मित हुई थी, जिनमें से 17 हिंदू धर्म की गुफाएं, 12 बौद्ध धर्म की गुफाएं तथा 5 जैन धर्म की गुफाएं पाई गई है। इस तरह एलोरा में 34 गुफाएं विश्व धरोहर घोषित की गई है।

चूंकि कालक्रम के अनुसार अजंता से चौदह शताब्दी बाद धम्मनार की गुफाएं निर्मित हुई है। यह आठवीं और नौवीं शताब्दी में निर्मित गुफाएं हैं। जबकि अजंता की गुफाएं 200 से 600 ईसा पूर्व में निर्मित हुई थी। उन्हीं की तर्ज, शैली, वास्तुकला और उसी तरह के एक शैल पर उत्कीर्ण करके बनाए गई हैं। इसलिए उनसे संख्या में ज्यादा होने के कारण उनसे उत्कृष्ट थी।

इसकी उत्कृष्टता को कई कारणों से समझा जा सकता है। एक तो यहां भी परंपरा के अनुसार ब्राह्मण धर्म गुफाएं हैं। इसके लिए धर्मराजेश्वर का मंदिर लेटराइट पत्थर को तराश कर बनाया गया है। फर्क इतना है कि अजंता-एलोरा का कैलाश मंदिर दक्षिण भारती द्रविड़ शैली में बना हुआ है जबकि धर्मराजेश्वर का मंदिर उत्तर भारतीय नागरिक शैली में उत्कीर्ण है। दोनों मंदिरों में मुख्य मंदिर के साथ-साथ 7 लघु मंदिर हैं। यहां पर द्वार मंडप, सभा मंडप, अर्ध मंडप, गर्भ ग्रह और कलात्मक उन्नत शिखर जो कलशयुक्त है, उत्कीर्ण हैं।

दूसरा इसे व्यापारक्रम से भी समझा जा सकता है। यहां समुद्र मार्ग से व्यापार करने वाले व्यापारी इसी मार्ग से गुजरते थे। उनके लिए यहां ठहरने, विहार करने और विश्राम की उत्तम व्यवस्था थी। इस दौरान वे धर्म की शिक्षा-दीक्षा के लिए भी समय निकाल लिया करते थे।

प्राचीन काल में धर्म के प्रचार-प्रसार, शिक्षा-दीक्षा, विहार-आहार और पूजा-पाठ, प्रार्थना-अर्चना आदि कार्य प्रमुख केंद्र था। यहीं से विभिन्न प्रांत, प्रदेश, देश, विदेश में धर्म के प्रचार-प्रसार, शिक्षा-दीक्षा के लिए अनुयाई जाते-आते थे। इस कारण भारत की ह्रदय में स्थित होने से यह स्थान संपूर्ण भारत के लिए महत्वपूर्ण केंद्र था।

गुफाओं की समृद्धि के आधार पर देखें तो यहां की गुफाओं में बौद्ध धर्म, जैन धर्म से संबंधित धर्म की शिक्षा का चित्रण, भित्ति पर शिल्पकारी और गौतम बुद्ध की प्रतिमाएं विभिन्न मुद्रा में ऊपरी उकेरी गई है। यहां बुद्ध की बैठी, खड़ी, लेटी, निर्वाण, महानिर्वाण शैली की कई प्रतिमा लगी हुई है। इन गुफाओं में स्तुप, चैत्य, विहार और महाविहार की उत्तम व्यवस्था थी।

इसके लिए यहां उपासना गृह, पूजा स्थल, अर्चना के कक्ष तथा ध्यान केंद्र के लिए उपयुक्त स्थान बने हुए हैं। यहां पर निर्माण मुद्रा में बैठी गौतम बुद्ध की बड़ी-बड़ी मूर्तियां उकेरी गई है। इस जैसी मूर्तियां अजंता-एलोरा में भी देखी जा सकती है।

यहां की गुफाओं में से सात नकाशीदार गुफाएं हैं। इन 51 क गुफाओं में स्तुप, चैत्य, मार्ग और आवास बने हुए हैं। शैल उत्कीर्ण खंभे, लंबा-चौड़ा दालान, आवास श्रृंखला, ध्यान केंद्र, उपासना केंद्र, पूजा-अर्चना स्थल की एक लंबी श्रृंखला है।

इसके बारे में कहा जाता है कि जब ओलिवर वंश का शासन था तब यहां शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र मालव में था। उस समय पूरे मालवा प्रांत में उल्लेखनीय शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी। यहां पर उत्कृष्ट वास्तु व भवनकला, पच्चीकारी व पत्थर पर मीनाकारी के उत्कृष्ट शिक्षा-दीक्षा, पूरी वैज्ञानिक रीतिनिति व योजना को मूर्त देकर दी जाती थी। इसी समय यहां के राष्ट्रकूट शासन ने हिरण्यगर्भ यज्ञ किया था। जिसने बौद्ध धर्म के अनुयाई जो पूर्व में हिंदू धर्म से धीरे-धीरे बौद्ध धर्म में पर दीक्षित हुए थे उन्हें ब्राह्मण धर्म में परिवर्तित किया गया था।

चूंकि एलोरा की 17 हिंदू गुफा, 12 बौद्ध गुफा, 7 जैन गुफा कालक्रम अनुसार हिंदुओं के बौद्ध धर्म से जैन धर्म के क्षेत्र में विकसित होने हुए आगे बढ़ने की कथा कहती है। वहां हिरण्यगर्भ यज्ञ की बात सही प्रतीत होती है।

वैसे धम्मनगर की गुफाएं विश्व की उत्कृष्ट बौद्धविहार की गुफाएं, धर्म की उपासना का केंद्र, शिक्षा-दीक्षा के महत्वपूर्ण स्थल के साथ प्राचीन व्यापारी मार्ग का महत्वपूर्ण स्थान थी। इसमें दो राय नहीं है। आप यहां इंदौर, भोपाल, उदयपुर से हवाई जहाज से होकर शामगढ़ पहुंच सकते हैं। मंदसौर से 75 किलोमीटर दूर शामगढ़ से 22 किलोमीटर तथा चंदवासा से 3 किलोमीटर जंगल में स्थित इस स्थान पर बस व निजी साधन द्वारा आप सकुशल आ सकते हैं।

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 © ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

29-01-2023

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