श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # 107 ☆
☆ मुक्तक – ।। बीत गई सदियां होली जैसा कोई उपहार नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
[1]
हर रंग है मस्त फाग की फुहार है।
हर रंग से रंगीन रंगों की बौझार है।।
भंग की गोली हुरियारों की है टोली।
लाल पीला नीला सा हर क़िरदार है।।
[2]
भीग कर भी आदमी हो रहा निहाल है।
कपड़ों का सबके हो रहा बुरा हाल है।।
गिर रही दीवार गले मिल रहें हैं लोग।
अब मनमुटाव का बचा नहीं सवाल है।।
[3]
छोटे बड़ेआज सबका ही ऊंचा जलाल है।
होलिका नफरत दहन करने का ख्याल है।।
हर गम भुला दिया है होली के धमाल में।
उड़ रहा हर ओर ही गुलाल ही गुलाल है।
[4]
नशीली रंगभरी बयारी छा जाती है होली में।
हर आदमी पर खुमारी छा लाती है होली में।।
बेल बूटे हर फूल पत्ते पर झूमती है नई रंगत।
हर किसी पर मस्त सवारी छा पाती है होली है।।
[5]
सीने में किसी के मलाल सवाल बाकी नहीं है।
कोई भी धमाल होली में रहता बाकी नहीं है।।
सारी फिजा बन जाती है एक खूबसूरत नजारा।
दिलों में नफरती मैला गुलाल रहता बाकी नहीं है।।
[6]
पवित्र पावन पर्व होली जैसा कोई त्यौहार नहीं है।
दिल को दिल से जोड़ने वाला कोई व्यवहार नहीं है।।
होली स्नेह प्रेम मिलन का है नायाब अनोखा उत्सव।
बीत गई सदियां होली जैसा कोई उपहार नहीं है।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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