श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 76 ☆ देश-परदेश – निबंध : होली का त्यौहार ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमारे पड़ोसी शर्मा जी के पुत्र ने होली त्यौहार पर आज निबंध लिख कर हमें जांच के लिए दिया, जो निम्नानुसार हैं।
हमारे घर पर होली त्यौहार की चर्चा दीपावली के बाद से ही आरंभ हो जाती हैं। पिता और मां बात बात पर “होली के बाद या होली के समय” जैसे शब्दों का प्रयोग इस प्रकार से करते है, जैसे इतिहास में “ईसा पूर्व या ईसा के बाद” का हवाला दिया जाता हैं।
मां तो होली को ही भला बुरा बताती रहती हैं। गृह कार्य सेविका होली से पहले ही अपने गांव चली जाती है, और उसकी वापसी में भी कुछ अधिक समय ही लगाती है, इस काल में अधिकतर गृह कार्य पिता जी सम्पन करते हैं।
होली के दिन खाने पीने का सारा सामान खाद्य दूत स्विगी तुरंत लाकर दे जाता हैं। पिता जी प्रातः से ही अपने चहते फिल्मी हीरो अनिल कपूर के बताने पर मोबाईल पर “जंगली पोकर” खेलते रहते हैं।
हमारे पिताजी बहुत दूरदर्शी व्यक्ति हैं, होली के दिन मदिरा की दुकान बंद रहने के कारण पिताजी मदिरा और उसकी एसेसरीज की व्यवस्था समय से पूर्व कर लेते हैं।
मां प्रातःकाल से मोबाईल पर प्राप्त होली त्यौहार के मैसेज को “बिजली की गति” से भी तीव्र गति द्वारा इधर उधर कर त्यौहार की खुशियां मनाती हैं।
मैं और मेरी बहन भी अपने अपने मोबाईल से वीडियो गेम खेलकर त्यौहार का आनंद लेते हैं। घर पर होली की बख्शीश लेने जब भी कोई घंटी बजाता है, तो पिता जी हमको दरवाज़े पर ये कह देने के लिए भेज देते है, कि घर में कोई बड़ा नहीं हैं। इसकी एवज में हमें प्रति झूठ बोलने पर पचास का पत्ता मिल जाता हैं।
होली त्यौहार की समाप्ति पर दूसरे दिन से ही दीपावली त्यौहार की चर्चा आरंभ हो जाती हैं।
© श्री राकेश कुमार
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