श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नया पथ अपना स्वयं गढ़ो…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 48 ☆ नया पथ अपना स्वयं गढ़ो… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कौन बड़ा है कौन है छोटा

कौन खरा है कौन है खोटा

कौन लाभप्रद किसमें टोटा

उलझन में न पड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

बाधाएँ अनगिन आएगी

चट्टानें बन टकराएगी

गंध रूप रस रम्य रमणियाँ

शुभचिंतक बन उलझायेगी,

शांत चित्त होकर तटस्थ

गहरे से इन्हें पढ़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

है दृष्टि गड़ाए गगन गिद्ध

बगुले बन बैठे संत सिद्ध

हैं छिपे आस्तीन में विषधर

छल शिखर चढ़ा सच है निषिद्ध,

विपरीत हवाओं से जूझो

असत्य से सदा लड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

हो सजग स्वयं से भेंट करो

कालिमा चित्त की श्वेत करो

निष्पक्ष शांत निश्छल मन से

जन-हित में निर्णय नेक करो

बाहर-भीतर जो चोर उन्हें

निर्मोही हो पकड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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