श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “दीवट पर जलते घी के दीये…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 189 ☆ दीवट पर जलते घी के दीये… ☆
शब्दों का प्रयोग ही व्यवहार को निर्धारित करता है । जब कोई हमारे लिए अनुपयोगी हो जाता है तो उसे संकेतों द्वारा समझाया जाता, फिर कटु शब्दों का प्रयोग, फिर उपेक्षात्मक व्यवहार किया जाता है , इतने पर भी यदि सामने वाला आपकी बात नहीं समझता तो सीधे शब्दों में उसे निर्रथक बता कर अलग कर दिया जाता है । इस सबसे बचने का केवल एक उपाय है निरंतर स्वयं को अपडेट करते रहें, उपयोगी बनें अपनी सामर्थ्य के अनुसार ।
अपने भविष्य को सुधारने की चाहत में हम आज को जीना छोड़ देते हैं जिससे एक- एक कर उम्मीद के दरवाजे बंद होने लगते हैं और हम एक मोहरा बन कर जीने को मजबूर हो जाते हैं, इसलिए कोई न कोई हॉबी होना चाहिए जिससे जीवन में उत्साह बना रहेगा व लक्ष्य निर्धारण में सुगमता होगी ।
सब्र का फल मीठा होता है किन्तु ये फल उनको ही मिलता है जो कर्मयोगी होते हैं । बिना कार्य किये आलसी की तरह जीवन बिताने से कैसे बदलाव होगा, ध्यान रखें परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता है।सीखने – सिखाने की प्रक्रिया के सहभागी बनें तथा प्रेरक बन कर दूसरों का मार्गदर्शन करने के गुणों का विकास करते रहें ।
कार्य करना बहुत आसान होता है किन्तु उसे नियमित करना बहुत मुश्किल क्योंकि मनुष्य का स्वभाव महत्वाकांक्षी होता है, उसे जल्दी ही सब कुछ पा जाने की चाहत होती है । मुफ्त में कुछ मिलेगा तो वो स्थायी नहीं रह पायेगा । आपको अपनी योग्यता के आधार पर वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए ।
क्रोध के मूल में लालच का वास होता है जिससे व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है , उसकी प्रवृत्ति अधीर, हिंसक, कपटी होने लगती है और जल्दी ही वो अपनों से दूर हो काल्पनिक दुनिया में जीने लगता है ।
इस सब से बचने हेतु मात्र एक ही उपाय है किसी परम शक्ति के प्रति पूर्ण निष्ठा का भाव, श्रद्धा जब हृदय में होगी तब अनजाने में भी व्यक्ति कोई गलती नहीं करेगा क्योंकि उसकी मूल प्रवृत्ति अहिंसक होगी ।
सबकी समस्याओं को निपटाना व उनके कार्यों का निरीक्षण करना बहुत सरल कार्य है पर नेतृत्व करते हुए सबको जोड़कर अनुशासित रखना उतना ही कठिन । लोगों की महत्वाकांक्षा उन्हें विचलित करती रहती है , बिना कुछ किये सब कुछ पाने की इच्छा उनकी प्रगति में सबसे बड़ा रोड़ा होती है ।
एक विशाल भवन स्तंभों पर खड़ा होता है यदि हर पिलर टूट कर गिरने लगेगा तो कब तक उसे अस्थायी खम्भों के सहारे बचाया जा सकता है । भवन की मजबूती के लिए मजबूत स्थायी स्तम्भों का होना बहुत जरूरी होता है ।
नींव की महत्ता को जब तक पहचाना नहीं जायेगा तब तक प्राकृतिक आपदाओं से भवन की सुरक्षा संभव नहीं ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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