श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “आँधियों के राग…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 50 ☆ आँधियों के राग… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
नदी कर स्नान
फिर आ घाट पर बैठी
धूप में रेता सुखाती है।
तप रहे हैं पाँव
होंठों पर दहकती आग
हवा के मस्तूल
बजते आँधियों के राग
दोपहर सुलगी
छुपी पेड़ों के नीचे
छाँव,थोड़े पल बिताती है।
श्वेत खद्दर पहन
बगुले चुन रहे हैं मछलियाँ
खाट पर लेटा
दिवस,ले रहा है झपकियाँ
पसीना खारा
मीठी प्यास के मारे
नींद आलस भर सुलाती है।
दिन थका हारा
लिए घर लौट आई साँझ
अँधेरे में लुटा
सब कुछ,हुईं रातें बाँझ
चाँद मटमैला
छुपा जाने कहाँ है
चाँदनी भ्रम को जगाती है।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈