श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 42 ☆
☆ कविता ☆ “मुर्शिद…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
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मुर्शिद तुमने जाग़ जगाई
आंख में मेरे जान जो आई
रातों की अब नींद गवाई
तुमने एहसास की आग लगाई
*
मुर्शिद तुमने जाग़ जगाई
इश्क़ की ये आंधी उठाई
नहीं लगता जब दुश्मन कोई
कैसी अजब ये जीत दिलाई
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मुर्शिद तुमने जाग़ जगाई
जैसे सियाही ये पिघलाई
लफ़्ज़ों की हद तूने मिटाई
अनहद गवाही ये गुंजाई
*
मुर्शिद तुमने जाग़ जगाई
रौशन शब अब दे दुहाई
था अंधेरा बड़ा जाहिली
अल-क़मर तूने रात सजाई
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈