श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “वही क्यों न हुआ…” ।)
ग़ज़ल # 119 – “वही क्यों न हुआ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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मेरी जो चाहत थी वही क्यों न हुआ,
कुछ राहत मिलती वही क्यों न हुआ।
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जिनके लिये दोस्तों से लड़ता रहा,
वो दुश्मनों से ख़फ़ा यूँही क्यों न हुआ।
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जिसको पत्थर उठाने में तकलीफ़ थी,
पूछता अर्श में सुराख़ अभी क्यों न हुआ।
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वह बताती तो यशोदा तरह चाहा,
उसका बर्ताव फिर अम्मी क्यों न हुआ।
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नाटक बहुत करता है लोकप्रिय नेता,
फिर उसका किरदार फ़िल्मी क्यों न हुआ।
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जो मुफ़लिस ग़म की आग में जलता रहा,
ज़िंदगी उसकी सुलगती अर्थी क्यों न हुआ।
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नाम पर बुत के झुका लिया सारा जहाँ,
आतिश तेरा नाम ज़िम्मी क्यों न हुआ।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈