श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “पीर थक कर सो गई है…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 126 – पीर थक कर सो गई है… ☆
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पीर थक कर सो गई है,
प्रिय उसे तुम मत जगाओ।
हो सके तो थपकियाँ दे,
प्रेम की लोरी सुनाओ।।
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वेदनाओं की तरफ से,
अब नहीं आता निमंत्रण।
द्वार से ही लौट जाता,
हो गया दिल पर नियंत्रण।।
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अब नहीं संधान करता,
फिर न उसको तुम बुलाओ।
पीर थककर सो गई है,
प्रिय उसे तुम मत जगाओ।।
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वक्त कितना था बिताया,
उन मुफलिसी के दौर में,
झूलता ही रह गया था।
तब स्वप्नदर्शी जाल में,
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फिर मुझे उस पालने में।
अब नहीं किंचित झुलाओ।
पीर थक कर सो गई है।
प्रिय उसे तुम मत जगाओ ।।
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सुख सदा शापित रहा है,
द्वार पर आई न आहट।
आ गया था संकुचित मन,
धर अधर पर मुस्कुराहट।
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जो विदा लेकर गया फिर,
उस खिन्नता को मत बुलाओ।
पीर थक कर सो गई है।
प्रिय उसे तुम मत जगाओ ।।
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पीर होती है घनेरी,
भावनाओं के सफर में।
वर्जनाएँ खुद लजातीं,
अश्रु धारा की डगर में।।
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देखने दो पल सुनहरे,
अब दृगों को मत रुलाओ।
पीर थककर सो गई है।
प्रिय उसे तुम मत जगाओ।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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