श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख “मिलन मोशाय : 1“।)
☆ कथा-कहानी # 100 – मिलन मोशाय : 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
“मिलन चक्रवर्ती ” जब अपने बचपन के कोलकाता डेज़ को याद करते हैं तो उनकी फुटबाल सदृश्य गोल गोल आंखों से आँसू और दिल से एक हूक निकलने लगती है.बचपन से ही दोस्तों के मामले में लखपति और दुश्मनों के मामले में भी लखपति रहे थे और ये दोस्तियां स्कूल और कॉलेज से नहीं बल्कि फुटबॉल ग्राउंड पर परवान चढ़ी थीं. मोहनबगान के कट्टर समर्थक, मिलन मोशाय हर मैच के स्थायी दर्शक, हूटर, चियरलीडर सबकुछ थे और उनकी दोस्ती और दुश्मनी का एक ही पैरामीटर था. अगर कोई मोहनबगान क्लब का फैन है तो वो दोस्त और अगर ईस्ट बंगाल क्लब वाला है तो दुश्मन जिसके क्लब के जीतने पर उसकी पिटाई निश्चित है पर उस बंदे को घेरकर कहां मोहन बगान क्लब की हार की भड़ास निकालनी है, इसकी प्लानिंग स्कूल /कॉलेज़ में ही की जाती थी. जब भी ये टारगेट अकेले या मात्र 1-2 लोगों के साथ सपड़ में आ जाता तो जो गोल मिलन बाबू का क्लब फुटबाल ग्राउंड में नहीं कर पाया, वो एक्सट्रा टाईम खेल यहां खेला जाता और फुटबाल का रोल यही बंदा निभाता था. यही खेल मिलन मोशाय के साथ भी खेला जाता था जब ईस्ट बंगाल क्लब हारती थी. पर दोस्ती और दुश्मनी का ये खेल फुटबाल मैच के दौरान या 2-4 दिनों तक ही चला करता था जब तक की अगला मैच न आ जाय. फुटबाल मैच उन दिनों टीवी या मोबाइल पर नहीं बल्कि ग्राउंड पर देखे जाते थे और अगर टिकट नहीं मिल पाई तो ट्रांजिस्टर पर सुने जाते थे. हर क्रूशियल मैच की हार या जीत के बाद नया ट्रांजिस्टर खरीदना जरूरी होता था क्योंकि पिछला वाला तो मैच जीतने की खुशी या मैच हारने के गुस्से में शहीद हो चुका होता था. (फुटबाल में मोशाय गम नहीं मनाते बल्कि गुस्सा मनाते हैं.)
आज जब मिलन बाबू पश्चिम मध्य रेल्वे में अधिकारी हैं तो अपने ड्राइंग रूम के लार्ज स्क्रीन स्मार्ट टीवी पर सिर्फ फुटबाल मैच ही देखते हैं. नाम के अनुरूप मिलनसारिता कूट कूट कर भरी है और अपने हर दोस्त को और हर उस ईस्ट बंगाल क्लब के फैन को भी जो कोलकाता से दूर होने के कारण अब उनका दोस्त बन चुका है, उसके जन्मदिन, मैरिज एनिवर्सरी पर जरूर फोन करते हैं. अगर उनकी मित्र मंडली के किसी सदस्य के या उसके परिवार के साथ कोई हादसा होता तो भी फोन पर बात करके उसके दुःख में सहभागी बनने का प्रयास करते रहते थे.जब कभी कोलकाता जाना होता तो कम से कम ऐसे मित्रों से जरूर घर जाकर मिलते थे. मिलन मोशाय न केवल मिलनसार थे बल्कि अपने कोलकाता के दोस्तों से दिल से जुड़े थे. ये उनकी असली दुनियां थी जिसमें उनका मन रमता था. बाकी तो बस यंत्रवत काम करना, परिवार के साथ शॉपिंग और सिटी बंगाली क्लब के आयोजन में परिवार सहित भाग लेना उनके प्रिय शौक थे.
डॉक्टर मुखर्जी की सलाह पर उन्होंने टेबल टेनिस खेलना शुरु किया जिसमें एक्सरसाईज़ भी होती थी और मनोरंजन भी. यहां बने उनके कुछ मित्रों की सलाह पर प्रोग्रसिव जमाने के चालचलन को फालो करते हुये उन्होंने स्मार्ट फोन ले डाला और जियो की सिम के दम पर वाट्सएप ग्रुप के सदस्य बन गये.
जारी रहेगा :::
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